महाशिवरात्री SPECIAL
इस बार महाशिवरात्रि पर्व 11 मार्च 2021 को है अपने पुजा, व्रत और मनोकामना पूर्ण करने हेतु यह पोस्ट पढ़े और विधि विधानों का पालन करते हुये सच्चे मन से भगवान शिव जी का ध्यान करके उनसे मनचाहा वरदान पाये।
महाशिवरात्रि पर्व एक परिचय
भारत देश में आदि काल से मानव कल्याण हेतु मूल्यों के संरक्षण व पालन की प्रथा रही है। जो विश्वबन्धुत्व की कामना से ओत प्रोत है। जहां पूरे विश्व को वैसुधैव कुटुम्बकम की धारण से देखा जाता है। वैदिक व पौराणिक ग्रथ साफ तौर पर जीव व जीवन के मध्य परस्पर सहयोग, सद्भावना, दया, क्षमा, साहस, धैर्यता, वीरता का संदेश मानव जाति के बीच युगों से दे रहें हैं। हिन्दू धर्म के मान्य व प्रणाणित ग्रंथों में चाहे वह गीता हो, भीमद्भागवत हो, शिव पुराण, लिंग पुराण हो या फिर रामायण हो, सभी में कर्म की प्रधानता को स्वीकार किया गया है और उसके ही अनुसार प्रत्येक मनुष्य को शुभाशुभ फल मिलता है। आज नहीं तो कल किए गए कर्मों का फल तो आवश्य ही भोगना होगा। क्योंकि परामर्थ व दूसरों के कल्याण की भावना देव व दैवीय शक्ति की आदत रही हैं। देव कृपा व प्रेरणा से ही मनुष्य में सद्बुद्धि, परोपकार की भावना संचरित होती रहती है। प्रत्येक मानव सुखी हो, उसकी बुद्धि निर्मल हो, तन सुन्दर व मन प्रसन्न हो, उसे देवत्व प्राप्त हो, मन की कुण्ठा, दुर्भावना, ग्लानि, रोग, भय, पीड़ा, ऋणों से उसे छुटकारा मिले साथ ही उसे परम सत्य ईश्वर के दर्शन हो जाएं और मानव मोक्ष का भागी बन जीवन के परम लक्ष्य को भेदने में कामयाब हो, इसी लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु हिन्दू धर्म में नाना विधि त्यौहारों की आवृत्ति उनके संबंधित देवी-देवताओं की पूजा उपासना का क्रम अनवरत रूप से चलता रहता है। इसी क्रम में परम कल्याणकारी भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने हेतु महाशिव रात्रि का व्रत आता है। शिव ही सर्व देवमय हैं, जगत के पिता, स्वामी हैं, सभी विद्याओं के मालिक, शमसान सेवी हैं, वो ही अर्द्धनारी ईश्वर का रूप हैं, सब कुछ शिवमय हैं, शिव सर्वत्र व्याप्त हैं। भगवान शिव ही देवों के देव है, जिन्हें महादेव भी कहा जाता है। शिव ही सभी का आश्रय हैं। चूंकि जो सभी का आश्रय हैं, वह सभी के लिए पूज्य भी हैं, अर्थात् महाशिवरात्रि की पूजा भारत सहित विश्व के अनेक देशों में की जाती है। महाशिव रात्रि का महापर्व प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। क्योंकि यह तिथि भगवान को अति प्रिय है। इसी दिन शिव लिंग की उत्पत्ति हुई थी। आदि काल में शिव पार्वती की शादी इसी दिन हुई थी। इस प्रकार कई कारण हैं, जिससे महाशिवरात्रि का पर्व इसी दिन मनाया जाता है। इस व्रत को बच्चें, युवक, बूढ़े, महिलाएं एवं पुरूष श्रद्धा, भक्ति के साथ कर सकते हैं। इस व्रत के विषय विविध प्रसंग संबंधित पुराणों में प्राप्त होते हैं।
ज्योतिष शास्त्र भारतीय मनीषियों की एक ऐसी अद्भुत उलब्धि है, जो सम्पूर्ण विश्व के लिए एक दर्पण है। ज्योतिष अति सूक्ष्य गणनाओं से दीर्ध गणनाओं का सृजन बड़े ही तथ्य परक ढंग से करता है। चाहे वह ग्रह नक्षत्रों की गणना या चाल हो, या उनका मानव जीवन पर प्रभाव या फिर दिन व तिथियों की गणना हो, यह सब कुछ बड़े ही तथ्य परक ढंग से ज्योतिष शास्त्र करता है। इसी प्रकार ज्योतिष महाशिव रात्रि से इसलिए संबंधित हैं, क्योंकि चतुर्दशी तिथि भी ज्योतिष से संबंधित हैं। बल्कि इस तिथि के स्वामी सक्षात भगवान शिव ही हैं। इतना कहना काफी नहीं हैं, बल्कि यह कहा जाय कि शिव के द्वारा ही पूर्व काल में ज्योतिष को सर्व प्रथम ऋषियों को जन कल्याण हेतु उपदेशित किया गया था। जिससे शिव का संबंध ज्योतिष से हैं और ज्योतिष की गणना में महाशिव रात्रि भी है। इसलिए ज्योतिष शास्त्र में महाशिव रात्रि का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है। शिव के द्वारा ही ग्रह नक्षत्र शासित है, साक्षात् भगवान शिव के मस्तक में चंद्रमा शोभायमान हो रहे हैं। ज्योतिष में चंद्रमा माता का कारक व मन से संबंधित है। अर्थात् महाशिवरात्रि के दिन व्रत पूजन से कुण्डली में उपस्थित ग्रह जनित दोष शिव की कृपा से दूर होते हैं। व्यक्ति के दुःख, पीड़ाओं का अंत होता है और उसे इच्छित फल पुत्र, धन, सौभाग्य, समृद्धि व आरोग्यता का लाभ होता है। महाशिव चूंकि चतुर्दशी को मनाई जाती है, जिसका जोड़ 1+4=5 हुआ जो कालपुरूष की कुण्डली में पांचवे भाव को दर्शाती है। जो व्यक्ति के जीवन में प्रेम, विद्या, संतान से संबंधित है। अर्थात् महाशिव रात्रि एवं ज्योतिष का बड़ा ही व्यापक संबंध है।
हिंदुओं के बीच महाशिवरात्रि का उत्सव बहुत महत्व रखता है। यह एक हिंदू त्योहार है जो भगवान शिव को समर्पित है। शिवरात्रि एक ऐसा अवसर है जो हिंदू कैलेंडर में हर एक महीने में आता है, हालांकि, फाल्गुन महीने में शिवरात्रि को पूरे भारत में महा शिव रात्रि के रूप में मनाया जाता है। दक्षिण भारतीय कैलेंडर के अनुसार, यह शुभ भारतीय त्यौहार माघ महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। अंतर केवल महीने के नामों में निहित है, इस अवसर को देखने का दिन भारत के दोनों हिस्सों में समान है। इसलिए हिंदी में महाशिवरात्रि को 'भगवान शिव की महान रात' भी कहा जाता है।
महाशिवरात्रि पर्व की पौराणिक मान्यताएं
ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा दिन में चार बार करनी चाहिए. वेदों में इस दिन हर प्रहर में पूजा करने को बेहद शुभ माना गया है.
महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त
निशित काल पूजा मुहूर्त: 11 मार्च, रात 12 बजकर 6 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक
पहला प्रहर: 11 मार्च की शाम 06 बजकर 27 मिनट से 09 बजकर 29 मिनट तक
दूसरा प्रहर: रात 9 बजकर 29 मिनट से 12 बजकर 31 मिनट तक
तीसरा प्रहर: रात 12 बजकर 31 मिनट से 03 बजकर 32 मिनट तक
चौथा प्रहर: 12 मार्च की सुबह 03 बजकर 32 मिनट से सुबह 06 बजकर 34 मिनट तक
महाशिवरात्रि पारणा मुहूर्त: 12 मार्च, सुबह 06 बजकर 36 मिनट से दोपहर 3 बजकर 04 मिनट तक
महा शिवरात्रि का महत्व
महा शिवरात्रि एक पवित्र हिंदू त्योहार है जो उपवास और ध्यान के माध्यम से जीवन और दुनिया में अंधेरे और बाधाओं पर काबू पाने के एक स्मरण के रूप में चिह्नित है। यह शुभ अवसर वह समय होता है जब भगवान शिव और देवी शक्ति की दिव्य शक्तियां एक साथ आती हैं। यह भी माना जाता है कि इस दिन ब्रह्माण्ड आध्यात्मिक ऊर्जा को आसानी से विकसित करता है। महाशिवरात्रि का पालन उपवास, भगवान शिव पर ध्यान, आत्मनिरीक्षण, सामाजिक सद्भाव और शिव मंदिरों में सतर्कता द्वारा किया जाता है। दिन के दौरान मनाए जाने वाले अन्य हिंदू त्योहारों के विपरीत, शिवरात्रि एक अनूठा त्योहार है जो रात के दौरान मनाया जाता है।
महाशिवरात्रि से जुड़ी कई किंवदंतियां हैं। लिंग पुराण जैसे कई पुराणों में इसके महत्व का उल्लेख किया गया है और वे महाशिवरात्रि व्रत करने और भगवान शिव और उनके प्रतीकात्मक प्रतीकों जैसे लिंगम पर श्रद्धा करने के महत्व के बारे में विस्तार से बताते हैं। एक किंवदंती के अनुसार, इस रात को शिव ने तांडव नृत्य का प्रदर्शन किया था - सृजन और विनाश की एक शक्तिशाली और दिव्य अभिव्यक्ति। भक्त शिव भजन गाते हैं और धर्मग्रंथों का पाठ करते हैं जो प्रतीकात्मक रूप से सर्वशक्तिमान द्वारा किए गए लौकिक नृत्य का एक हिस्सा है और हर जगह उनकी उपस्थिति का जश्न मनाते हैं। एक और किवदंती है जिसमें कहा गया है कि इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था जो विवाहित जोड़ों और अविवाहित महिलाओं जो एक अच्छा पति चाहती हैं, के लिए इस त्योहार को बहुत महत्वपूर्ण बनाता है ।
महाशिवरात्रि 2021 उत्सव
यह त्योहार भगवान शिव के सभी उत्साही भक्तों द्वारा बहुत उत्साह और पवित्र भावना के साथ मनाया जाता है। महाशिवरात्रि का उत्सव सुबह सुबह से शुरू होता है और देर रात तक जारी रहता है। भक्तगण इस दिन एक दिन का उपवास रखते हैं और अपना समय भगवान शिव की पूजा और स्मरण में बिताते हैं। यह माना जाता है कि शिव और उनके प्रतीक की पूजा करने से उनके पिछले पापों में से एक को दूर किया जा सकता है और उन्हें मोक्ष प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। लोग इस दिन मंदिरों में भगवान की पूजा अर्चना करने के लिए उमड़ते हैं।
महाशिवरात्रि पूजा अनुष्ठान
महाशिवरात्रि पूजा सुबह जल्दी शुरू होती है जब भक्त सूर्योदय से पहले स्नान करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और शिव मंदिर जाते हैं। यह उन महिलाओं के लिए एक विशेष दिन है जो पारंपरिक महाशिवरात्रि पूजा को पानी, दूध, बेल के पत्तों, फल जैसे बेर या लाल बेर और अगरबत्ती के साथ करती हैं। वे शिव लिंगम के चारों ओर 3 या 7 फेरे लेते हैं, फिर दूध डालते हैं और अगरबत्ती ,पत्ते, फल, फूल के साथ पूजा करते हैं।
छह महत्वपूर्ण तत्व हैं जिनका उपयोग महाशिवरात्रि पूजा करते समय किया जाना चाहिए और प्रत्येक एक विशेष अर्थ का प्रतीक है।
- शिव लिंगम का जल और दूध से स्नान और बेल के पत्तों से आत्मा की शुद्धि होती है
- स्नान के बाद सिंदूर पुण्य का प्रतीक है।
- पूजा करते समय चढ़ाए गए फल इच्छाओं और दीर्घायु की पूर्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- अगरबत्ती जलाना धन का प्रतीक है।
- पान का पत्ता सांसारिक इच्छाओं से संतुष्टि दर्शाते हैं।
- दीपक को जलाना ज्ञान और बुद्धिमानी की प्राप्ति का प्रतीक है।
इस त्यौहार का मुख्य पहलू शिव मंदिर में रात्रि जागरण है, इसीलिए भक्तों द्वारा जागरण का आयोजन किया जाता है। यही कारण है कि महाशिवरात्रि की रात, मंदिर ’ओम नमः शिवाय’ के मंत्रों से गूंजते रहते हैं तथा पुरुष और महिलाएं भगवान शिव के सम्मान में भक्ति गीत गाते हैं।
महाशिवरात्रि पूजा विधि
भगवान भोले नाथ को प्रसन्न करने के लिए महाशिवरात्रि पर तीन पत्तों वाला 108 बेल पत्र चढ़ाएं.
भांग को दूध में मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं. ऐसी मान्यता है कि उन्हें भांग बेहद पसंद है.
इसके अलावा धतूरा और गन्ने का रस शिव शंभू को जरूर अर्पित करें.
जल में गंगाजल मिलाएं और शिवलिंग पर चढ़ाएं
ऐसे करें शिव रात्रि पर भगवान शिव की पूजा
रात्रि की पूजा करने से पहले स्नान जरूर कर लें
पूरी रात्रि भगवान शिव के समक्ष एक दीपक जरूर जलाएं.
उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं
इसके बाद केसर के 8 लोटे से जल अर्पित करें.
फिर चंदन का तिलक लगाएं
अब तीन पत्तों वाला 108 बेलपत्र चढ़ाएं,
भांग, धतूरा, गन्ने का रस भी उन्हें काफी पसंद है. ऐसे में उन्हें जरूर अर्पित करें
इसके अलावा तुलसी, जायफल, फल, मिष्ठान, कमल गट्टे, मीठा पान, इत्र व दक्षिणा भी चढ़ाना न भूलें.
इस दौरान ॐ नमो भगवते रूद्राय, ॐ नमः शिवाय रूद्राय् शम्भवाय् भवानीपतये नमो नमः मंत्र का जाप करते रहें.
अंतिम में केसर से बने खीर का प्रसाद शिव जी को चढ़ाएं
शिव पुराण पढ़े, चालीसा और आरती करें.
संभव हो तो रात्रि जागरण करें
शिवरात्रि व्रत कैसे करें?
महाशिवरात्रि व्रत विधान इस दिन उपवास की पूरी प्रक्रिया को पूरा करता है। शिवरात्रि व्रत का पालन करने के लिए भक्तों को दिन में केवल एक समय भोजन करना चाहिए। महाशिवरात्रि के दिन, भक्तों को पूरे दिन एक कठोर उपवास रखने का संकल्प या प्रतिज्ञा लेना चाहिए और अगले दिन केवल भोजन करना चाहिए। वे भगवान शिव से आशीर्वाद मांगते हैं कि वे शक्ति और दृढ़ संकल्प के साथ महाशिवरात्रि व्रत को बिना किसी बाधा और बाधा के पूरा करें।
महा शिवरात्रि पूजा रात के समय की जानी चाहिए और भक्तों को स्नान करने के अगले दिन उपवास तोड़ना चाहिए। व्रत का अधिकतम लाभ पाने के लिए चतुर्दशी तिथि समाप्त होने से पहले व्रत को सूर्योदय और समय के बीच कभी भी तोड़ा जा सकता है।
यह देश भर में मनाया जाने वाला एक सुंदर पवित्र और धार्मिक त्योहार है। महाशिवरात्रि एक ऐसा त्यौहार है जब भगवान शिव के सम्मान में हवा में धार्मिक पवित्रता भरी हुई होती है और इस त्यौहार की सभी भक्तों द्वारा भक्ति के साथ प्रतीक्षा की जाती है।
भगवान शिव
भगवान शिव का रूप बड़ा अद्भुत व निराला है। ऐसी अनुपन छठा जिसे वाणी व शब्दों के द्वारा वर्णित करना मानव के वश में है ही नहीं हैं, किन्तु विद्या की देवी साक्षात माँ शारद, हंस वाहिनी भी पार नहीं पा सकती हैं। यद्यपि भगवान शिव करोड़ों काम देव के समान सुन्दर, सभी विद्याओं व सिद्धयों से युक्त हैं। सम्पूर्ण जगत ही नहीं बल्कि तीनों लोकों की सम्पत्ति के स्वामी है। भक्तों के परम आश्रय, नित्य, अन्नत अविनाशी, अजन्मा, जीवन-मृत्यु, जरा, आदि सभी से पूर्णतः मुक्त हैं। जो भक्तों को सभी मंगल प्रदान करने वाले, अतिशीघ्र प्रसन्न होने वाले आशुतोष हैं। जहाँ पुनः जीवन का संचार होता है। जो निर्वाण को शान्ति देने वाले हैं। जिनके गले के नाग हार हैं, जिससे व नागेन्द्र कहलाएं, विशाल त्रिनेत्र जो त्रिकाल दर्शी होने तथा तीनों गुणों से युक्त, तीन देव आदि का संकेत है, जिनके वाम भाग में माँ पार्वती शोभायमान हो रही हैं। वृषभ जिनका वाहन हैं। जो धर्म का प्रतीक है अर्थात् धर्म के प्रेमी व रक्षक भगवान शिव, शमशान सेवी, जटाधारी, त्रिशूलधारी, कालों के महाकाल, प्रलंयकर, भयंकर, अक्षमाला धारण करने वाले, जिनके शीश में गंगा की धारा है। शमशान की भस्म धारण करने वाले, भभूति लगाने वाले, संसार के कल्याण हेतु समुद्र मंथन से उत्पन्न विष को अपने कण्ठ में धारण करने वाले, वाघम्बर को ओढ़ने वाले। इस संसार को अन्नत नाद में सुलाने की क्षमता रखने वाले, डम….डम डमरू की नाद से प्रसन्न होने वाले और सबको विश्राम देने वाले, भगवान शिव प्रलय काल में अपने तीसरे नेत्र से संसार का संहार करने वाले अर्थात् जग कर्ता- जग हर्ता हैं। ऐसे भगवान को शिव को कोटि-कोटि प्रणाम है। भगवान के लिंग की उत्पत्ति महाशिव रात्रि के दिन होने से यहाँ शिव लिंगों के विषय में चर्चा जरूरी हो जाती है। यद्यपि लिंगों की संख्या शास्त्र के अनुसार कई हजारों में है, जिसमें प्रत्येक लिंग की बनावट व उसकी महिमा का बड़ा विशद वर्णन हैं। यहां प्रमुख बारह (द्वादश ज्योतिर्लिंग) शिव लिंगों के नाम स्थान आदि का संक्षिप्त वर्णन किया जा रहा है। इन शिव लिंगों की बड़ी महिमा हैं, इन लिंगों के स्मरण मात्र से व्यक्ति के सभी पाप छूट जाते है। और उसे सुख शान्ति प्राप्त होती है। इन शिव लिगों के दर्शन व पूजन की बात ही क्या यह सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाले है। शिव की कृपा से ही इनके दुर्लभ दर्शन का सौभाग्य व्यक्ति के जीवन में उसे प्राप्त होता है।
बाहर ज्योतिर्लिंग
1. सोमनाथ, जो भारत देश के प्रभास पाटन के पास वेरावल सौराष्ट्र गुजरात में स्थित है।
2. मल्लिकार्जुन श्री शैल पर्वत आंध्र प्रदेश कृष्णा नदी के तट पर है।
3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर है।
4. ऊॅंकारेश्वर, ज्योतिर्लिंग मंधाता मध्यप्रदेश मे नर्मदा नदी बीच एक द्वीप मे हैं।
5. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग हिमालय के दुर्गम क्षेत्र में हरिद्वार से लगभग 150 मील दूर स्थित हैं
6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग डाकिनी क्षेत्र तालुका खेड़ जिला पुणे महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे हैं, भीमशङ्कर यह नासिक से करीब 120 मील दूर है, इसको असम के गुवाहाटी मे बताया जाता है,। अन्य मत के अनुसार नैनीताल जिले के काशीपुर नामक स्थान में स्थित शिवमंदिर को भीमशंकर कहते है।
7. विश्वेशर (काशी विश्वनाथ) ज्योतिर्लिंग यह वाराणसी शहर के उत्तर-प्रदेश में गंगा तट पर स्थिति है।
8. त्र्यंम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग नासिक में महाराष्ट्र से लगभग 26 किमी दूर गोदावरी नदी तट पर स्थिति है।
9. वैद्यनाथ धाम, ज्योतिर्लिंग पारली जिला, बीड ग्राम, महाराष्ट्र मे और दूसरा आज झारखण्ड के देवघर में है।
11. श्री रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग सेतु बंध के पास कन्याकुमारी तमिलनाडु मे है।
12. घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के पास वेसल गांव में हैं।
इन बारह ज्योतिर्लिंगों की बड़ी ही महिमा वेद पुराणों में है। जो प्रत्येक व्यक्ति को सुख, सम्पत्ति धन, विद्या, ऐश्वर्य, आयु आदि तमाम वांछित फल सहित मोक्ष को देने वाले हैं।
भगवान शिव की कथा
महाशिव रात्रि के विषय में पौराणिक कथा शिव पुराण सहित अन्य संबंधित ग्रंथों में उपलब्ध होती है। जिसमें प्रमुख रूप से शिकारी व हिरण के परिवार की कथा है। जो यह बताती है कि कोई चाहे कितना भी पापी हो, कठोर दिल हो शिव व उसके लिंग के निकट होने पर उसे वांछित फल तो प्राप्त ही होगा। पौराणिक कथानक के अनुसार एक शिकारी था जो कि अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए आखेट करता था। वह संयोग वश महाशिव रात्रि के दिन भूखा प्यासा रहकर अपने शिकार के आने की राह देखता रहा है तथा सायंकालीन वेला मे सरोवर के पास एक बिल्वपत्र के पेड़ में चढ़ कर वह इधर-उधर अपने शिकार को ताकता रहा, तथा वह अनजाने में प्रत्येक प्रहर में बिल्प पत्र तोड़कर गिराता रहा जो शिव लिंग पर चढ़ते रहे। इस दौरान उसे एक-एक करके तीन हिरणी व एक हिरण शिकार के लिए प्रस्तुत हुआ दिखा, किन्तु जैसे ही उस शिकारी ने अपने धनुष पर वाण चढ़ाकर उसे मारना चाहा तो, प्रस्तुत हुए हिरणी व हिरण ने अपनी कथा व व्यथा बताते हुए उस समय जाने व पुनः लौटकर आने के वादे से चले गए, और प्रातः काल होते ही पुनः वह हिरण परिवार उसके समक्ष अपने वादे के अनुसार आ खड़ा हुआ, जिससे शिकारी उन पशुओं के सत्य वचन से आश्चर्य चकित रह गया। अर्थात् शिव लिंग की पूजा उसके द्वारा अनजाने में महाशिव रात्रि के समय होती रही है। जिससे उसकी बुद्धि निर्मल हो गयी है। इस पूरे दृश्य को देवताओं ने देख लिया और प्रसन्न होकर शिकारी के ऊपर पुष्ट वृष्टि की तथा शिकारी धनादि से सम्पन्न हुआ और मृग परिवार को जीवन दान मिला तथा अंत में मृग के सत्य पालन और शिकारी की पूजा के फल से भगवान शिव प्रसन्न होकर उन्हें अंत में मोक्ष का वरदान दिया।
भगवान शिवजी को पूजने का महत्व
महाशिव रात्रि के दिन भगवान शिव सहित शिव परिवार की पूजा का अनूठा फल प्राप्त होता है। किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं, जीवन सुखद व सुन्दर होता है। श्रद्धालुओं को वांछित फल प्राप्त होते हैं। तथा पुत्र, पौत्र संतान की वृद्धि, ऐश्वर्य, आरोग्यता, आयु, सौभाग्य की प्राप्ति तथा बाधाएं आदि दूर होती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह स्त्री हो या पुरूष भगवान शिव की पूजा शिव रात्रि के दिन चार प्रहर दिन और चार प्रहर रात्रि की पूंजा पूरे प्रत्यन के साथ करनी चाहिए। यह पूजा साधारण नहीं है। अतः इसे पूरे भक्ति के साथ करना चाहिए। व्रती को प्रातःकाल ही नित्यादि क्रियाओं से निवृत होकर भगवान की पूजा, विविध प्रकार से करना चाहिए। जैसे-पंचोपचार (पांच प्रकार) या फिर षोड़षोपचार (16 प्रकार से) या अष्टादषोपचार (18 प्रकार) से श्रद्धालु भक्त किसी एक प्रकार की पूजा को अपना सकते हैं। इस दिन व्रत करने का विधान है। अतः स्नानादि से शुद्ध होकर शंकर जी के सम्मुख पूरे विश्वास के साथ प्रार्थना करनी चाहिए कि हे परम शिव आदि और अन्नत, हे देवों के देवता! हे महादेव! नागेश्वर आपको कोटि प्रणाम है। आप मुझे ऐसी ताकत दो, जिससे मै दिन के चार और रात्रि के चार प्रहरों मे पूंजा व्रत कर सकूं, इस पूजन में कोई बाधा न आएं। प्रत्येक व्यक्ति को पूरे प्रत्यन के साथ शिवार्चन करना चाहिए, प्रत्येक प्रहर में वैदिक मंत्रों द्वारा वैदिक ब्राह्मणों के द्वारा रूद्राभिषेक करवाना चाहिए जो अन्नत पुण्य देने वाला व रोग पीड़ाओं से मुक्ति दिलाने वाला होता है।
भगवान शिव की पूजन की विस्तृत विधि
दैनिक क्रिया के बाद, व्रत का संकल्प पूजन, हवन, अभिषेक, ब्रह्मचर्य का पालन, अक्रोध, श्रद्धा विश्वास और भक्ति के साथ पूजन की समाग्री सुन्गिधत फूल, बिल्वपत्र, धतूरा, जौ की बालें, मंदार पुष्प, भांग, बेर, आम्र मंजरी,गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, गंध रोली, मौली जनेऊ, मिष्ठान, कपूर, धूप, रूई, मलयागिरी चंदन, फल पार्वती की श्रृंगार की सामाग्री, वस्त्राभूषण, पूजा के बर्तन, आदि।
भगवान शिव के विशेष मंत्रः
शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए सबसे उपयुक्त– पंचाक्षरी मंत्र जाप है– ऊॅ नमः शिवाय यह बड़ा विशेष व प्रभावशाली मंत्र है- इसको अधिक से अधिक व्रत के समय व महाशिव रात्रि में जपना चाहिए। जिससे वांछित फल प्राप्त होते हैं।
बिल्वपत्र चढ़ाने का मंत्रः
नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वम्र्मिणे च वरूथिने च नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे।।
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम् पापनाशनम्। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्।।
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।
अखण्डै बिल्वपत्रैष्च पूजये शिव शंकरम्। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्।।
भगवान शिव की आरतीः
जय शिव ओंकारा, स्वामी हर शिव ओंकारा। ब्रह्म, विष्णु, सदाशिव, अद्र्धांगी धारा। ऊॅ जय..
एकानन चतुरानन पंचानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे।। ऊॅ जय..
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।। ऊॅ जय…
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी। त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।। ऊॅ जय..
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरूणादिक भूतादिक संगे।। ऊॅ जय…
कर के मध्य कमंउलु चक्र त्रिशूलधारी। सुखकारी दुखहारी जग पालन कारी।। ऊॅ जय..
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका।। ऊॅ जय..
काशी में विश्व नाथ विराजे, नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत महिमा अति भारी।। ऊॅ जय….
त्रिगुण स्वामी की आरती जो कोई नर गावे। कहत शिवानंद स्वामी मन वांछित फल पावें।।
शिवरात्रि के दिन भूलकर भी नहीं करें ये काम।
1. सनातन धर्म के अनुसार किसी भी समय दूसरों के लिए अपने मन में गलत भावना लाना या फिर किसी का बुरा करना आपको पाप का भागीदार बनाता है। यदि आप शिवरात्रि का व्रत रख नहीं भी रख रहे हैं तो भी इस दिन भूलकर भी किसी के बारे में न ही बुरा सोचें और न ही किसी का अहित करें। यदि आप ऐसा करते हैं तो आपको भगवान शिव की कृपा के बजाए उनके क्रोध का सामना करना पड़ता है।
2. धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि कभी भी दूसरों के पति या पत्नी पर बुरी नजर रखना महापाप होता है। यदि आप कभी भी ऐसा कार्य करते हैं तो दंड के भागी बनते हैं और शिवरात्रि के दिन भूलकर भी ऐसा नहीं करना चाहिए। अपने मन में भी ऐसा भाव लाना पाप माना गया है।
3. सनातन धर्म में माता-पिता बुजुर्गों और स्त्रियों का सम्मान करना धर्म परायण माना गया है। शिवरात्रि के दिन भूलकर भी माता-पिता, गुरूजनों,पत्नी, पराई स्त्री, बड़े-बुजुर्गों या पूर्वजों का अपमान नहीं करना चाहिए। उनके लिए गलती से भी मुख से अपशब्द नहीं निकालने चाहिए। मदिरा पान करना और दान की हुई चीजें या धन वापस लेना भी महापाप की श्रेणी में आता है।
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