Search

test

Post Top Ad

Your Ad Spot

Saturday, March 13, 2021

होली - त्यौहार का अर्थ, इतिहास एवं महत्व

होली – त्यौहार का अर्थ, इतिहास एवं महत्व 


होली कब मनाई जाती है? 

होली रंगों का त्योहार है, जिसे हर साल फागुन के महीने में (मार्च) हिन्दू धर्म के लोग बड़ी धूमधाम से मनाते है। होली बसंत ऋतु में मनाया जाने वाला भारतीय लोगों का प्रमुख त्यौहार है। यह उमंग, उत्साह और अध्यात्म के मेल का त्योहार है। होली का त्यौहार पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। यह त्यौहार मुख्य रूप से भारत तथा नेपाल में मनाया जाता है। यह पर्व विश्व के कई अन्य देशों जिनमें अल्पसंख्यक हिन्दू लोग रहते हैं, वहाँ भी बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। 

वर्ष 2021 में होली कब मनाई जाएगी: 

होलिका दहन रविवार, मार्च 28, 2021 को 

होलिका दहन मुहूर्त – 18:37 से 20:56 

अवधि – 02 घण्टे 20 मिनट

रंगवाली होली सोमवार, मार्च 29, 2021 को 

भद्रा पूँछ -10:13 से 11:16 

भद्रा मुख – 11:16 से 13:00 

होलिका दहन प्रदोष के दौरान उदय व्यापिनी पूर्णिमा के साथ 

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 28, 2021 को 03:27 बजे 

पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 29, 2021 को 00:17 बजे 

होली मनाने की विधि या होली कैसे मनाई जाती है? 

होली का ये उत्सव फागुन के अंतिम दिन होलिका दहन की शाम से शुरु होता है और अगला दिन रंगों में सराबोर होने के लिये होता है। छोटे बच्चे होली के त्यौहार का बड़े उत्सुकता से इंतजार करते है तथा आने से पहले ही रंग, पिचकारी, और गुब्बारे आदि की तैयारी में लग जाते है साथ ही सड़क के चौराहे पर लकड़ी, घास और गोबर के ढ़ेर को जलाकर होलिका दहन की प्रथा को निभाते है। 

लोग के दिन लोग सामाजिक विभेद को भुलाकर एक-दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, लोग ढोल बजा कर होली के गीतों पर नाचते-गाते हैं और घर-घर जा कर स्वादिष्ट पकवानों और मिठाईयाँ बाँटकर खुशी का इजहार करते है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं। 

होली से जुड़े हुए 15 रोचक बातें  – 

1: वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला त्यौहार होली भारत के प्रमुख त्योहारो मे से एक है. 

2: यह भारत के अलावा नेपाल और अन्य भारतीय प्रवासी देशो में धूमधाम से मनाया जाता है. 

3: हिन्दू पंचांग के अनुसार यह त्यौहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. 

4: होली का त्यौहार होली, होलिका व होलाका नाम से भी जाना जाता है. 

5: रंगो का यह त्यौहार प्रमुख रूप से दो दिन तक मनाया जाता है. 

6: पहले दिन होलिका को जलाया जाता है. जिसे होलिका दहन भी कहते है. 

7: दूसरे दिन लोग एक – दुसरे को रंग व अबीर – गुलाब लगाते है जिसे धुरड्डी व धूलिवंदन कहा जाता है. 

8: लोग इस दिन घर – घर जा कर एक – दुसरे को होली लगाते है. 

9: ऐसा मान लिया जाता है की एक इस दिन अधिकतर लोग अपना बैर – दुश्मनी भुलाकर होली लगाकर एक दुसरे के दोस्त बन जाते है. यह त्योहार आपसी प्रेम की निशानी है. 

10: यह त्यौहार फाल्गुन महीने में आता है जिस कारण कई लोग इसे फाल्गुनी भी कहते है. 

11: भारत में व्रज, मथुरा, वृन्दावन और बरसाने की लट्ठमार होली व श्रीनाथजी, काशी आदि की होली बहुत ही प्रसिद्ध है. 

12: भारत के कई हिस्सों में खेले काने वाली होली पाँच दिन तक मनाई जाती है. 

13: होली के त्योहार को कई लोग अपने गलत इरादों से बदनाम कर देते है. कई लोग इस दिन भांग – शराब का नशा करके हुडदंग मचाते हैं. कई आवारा लड़के लडकियों के साथ होली के नाम पर छेड़खानी करते है. हमें इन गलत आदतों से खुद बचना चाहिए और जो यह हरकत करता है उन्हें भी सबक सीखाना चाहिए. 

14: होली का त्योहार प्रहलाद, हिरणाकश्यप व होलिका की धार्मिक कहानी से जुड़ी हुई है. 

15: लोगो को होली में रंगों का सही ढंग से उपयोग करना चाहिए. केमिकल से बने रंगों से हमेशा बचना चाहिए. 


पौराणिक मान्यता -

1-नृसिंह रूप में भगवान इसी दिन प्रकट हुए थे और हिरण्यकश्यप नामक असुर का वध कर भक्त प्रहलाद को दर्शन दिए थे। 

2-हिन्दू मास के अनुसार होली के दिन से नए संवत की शुरुआत होती है। 

3-चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन धरती पर प्रथम मानव मनु का जन्म हुआ था। 

4 -इसी दिन कामदेव का पुनर्जन्म हुआ था। इन सभी खुशियों को व्यक्त करने के लिए रंगोत्सव मनाया जाता है। 

5 -त्रेतायुग में विष्णु के 8वें अवतार श्री कृष्ण और राधारानी की होली ने रंगोत्सव में प्रेम का रंग भी चढ़ाया। श्री कृष्ण होली के दिन राधारानी के गांव बरसाने जाकर राधा और गोपियों के साथ होली खेलते थे। कृष्ण की रंगलीला ने होली को और भी आनंदमय बना दिया और यह प्रेम एवं अपनत्व का पर्व बन गया 

6-भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था। 

सामाजिक मान्यता -

होली बसंत का त्यौहार है और इसके आने पर सर्दी ख़त्म हो जाती है  कुछ हिस्सों में इस त्यौहार का संमंध बसंत की फसल पकने से भी है किसान अच्छी फसल पैदा होने की खुसी में होली मनाते है होली को वसंत महोत्सव या काम महोत्सव भी कहते हे इस दिन लोग आपसी कटुता और वैरभाव को भुलाकर एक-दूसरे को इस प्रकार रंग लगाते हैं कि लोग अपना चेहरा भी नहीं पहचान पाते हैं। रंग लगने के बाद मनुष्य शिव के गण के समान लगने लगते हैं जिसे देखकर भोलेशंकर भी प्रसन्न होते हैं। 

इस दिन शिव और शिवभक्तों के साथ होली के प्यारभरे रंगों का आनंद लेते हैं व प्रेम एवं भक्ति के आनंद में डूब जाते हैं। 

होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के दर्प में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर 

हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद अक्षुर्ण रहता है। 

होली का इतिहास: 

होली भारत के सबसे पुराने त्योहारों में से एक है। होली को होलिका या होलाका नाम से भी मनाया जाता था। होली का का त्यौहार बसंत ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, इस कारण इसे बसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा जाता है। इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी होली का प्रचलन था लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था। इस पर्व का उल्लेख नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी मिलता है। 

होली क्यों मनाई जाती है? 

प्रचलित मान्यता के अनुसार यह त्योहार प्राचीन समय के एक राजा हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के मारे जाने की याद में मनाया जाता है। काफी समय पहले की बात है। उस एक राजा हुआ करते थे, जिनका नाम हिरण्यकश्यप था। उसकी एक बहन थी जिसका नाम होलिका था और होलिका का प्रह्लाद नामक एक पुत्र था। प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था और रोजाना उनकी पूजा किया करता था, जबकि उसके पिता चाहते थे कि प्रह्लाद समेत सभी उसकी पूजा करें। लेकिन भक्त प्रह्लाद को ये गवाँरा नहीं था और वह सदा भगवान विष्णु की ही पूजा करता था। इससे क्रोधित होकर उसके पिता ने उसको आग से जलाकर मारने की योजना बनाई। पुराणों में वर्णित है कि हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को भगवान से ये वरदान प्राप्त था कि आग उसे जला नहीं सकती थी। तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे, ऐसा करने से प्रह्लाद अग्नि में जल जाएगा तथा होलिका बच जाएगी। होलिका अपने भाई की बात मानकर आग में बैठी गई परंतु प्रह्लाद को इस आग से कोई नुकसान नहीं हुआ बल्कि होलिका ही इस आग में जलकर खाक हो गई। होलिका को यह स्मरण ही नहीं रहा कि अग्नि स्नान वह अकेले ही कर सकती है। तभी से इस त्योहार को मनाने की परम्परा की शुरूआत हुई। 

शिव पुराण के अनुसार, हिमालय की पुत्री पार्वती शिव से विवाह हेतु कठोर तप कर रही थीं और शिव भी तपस्या में लीन थे। इंद्र का भी शिव-पार्वती विवाह में स्वार्थ छिपा था कि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र द्वारा होना था। इसी वजह से इंद्र ने कामदेव को शिव जी की तपस्या भंग करने भेजा परन्तु शिव ने क्रोधित हो कामदेव को भस्म कर दिया। शिव जी की तपस्या भंग होने के बाद देवताओं ने शिव को पार्वती से विवाह के लिए राजी कर लिया। इस कथा के आधार पर होली में काम की भावना को प्रतीकात्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है। 

ब्रज की होली: 

उत्तर प्रदेश के वृन्दावन में खेली जाने वाली ब्रज की लट्ठमार होली तो पूरी दुनिया में मशहूर है। विश्व को प्यार का संदेश देने वाली नगरी में प्यार जताने का यह अंदाज, लाठियों की खटखट के बावजूद कम लुभावना नहीं है। दरअसल, यह मार नहीं, प्यार है। यही मार और प्यार होली पर दुनिया भर के सैलानियों को मथुरा-वंदावन खींच लाता है। इसमें शामिल होने देश के अलग-अलग हिस्सों से मस्तों की टोली पहुंचती है। 


पूरे ब्रज इलाके में होली पांच दिन की होती है। जब पूरे देश से रंग का खुमार उतरना शुरू होता है, तब भी यहां उमंग चरम पर होता है। तैयारी तो महीने भर से शुरू हो जाती है। इसकी आहट गली-गली में सुनाई देती है। इस्कॉन टेंपल से लेकर बांके बिहारी मंदिर तक आयोजन भव्य पैमाने पर होता है। होली के पांचों दिन बांके बिहारी मंदिर के आगे रंग में सराबोर हजारों का हुजूम जमा होता है। 

होली के त्यौहार के महत्व: 

होली का त्यौहार अपनी सांस्कृतिक और पारंपरिक मान्यताओं की वजह से बहुत प्राचीन समय से मनाया जा रहा है। इसका उल्लेख भारत की पवित्र पुस्तकों, जैसे पुराण, दसकुमार चरित, संस्कृत नाटक, रत्नावली और भी बहुत सारी पुस्तकों में किया गया है। 

होली का सामाजिक महत्व: 

होली के त्यौहार का अपने आप में सामाजिक महत्व है, होली के दिन सभी लोग पुराने भेदभाव भुलाकर एक-दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं। सभी लोग एक-दूसरे के घर जा कर स्वादिष्ट पकवानों और मिठाईयाँ बाँटकर खुशी का इजहार करते है। यह पर्व सभी समस्याओं को दूर करके लोगों को बहुत करीब लाता है, उनके बंधन को मजबूती प्रदान करता है। 

होली का वैज्ञानिक महत्व: 

होली सिर्फ एक त्योहार ही नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण से लेकर आपकी सेहत के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। होली का पर्व साल में ऐसे समय पर आता है, जब मौसम में बदलाव के कारण लोग आलसी से होते हैं। ठंडे मौसम के गर्म रुख अख्तियार करने के कारण शरीर का थकान और सुस्ती महसूस करना प्राकृतिक है। होली वाले दिन सभी जोर से गाते नाचते हैं, जिससे मानवीय शरीर को नई ऊर्जा प्रदान होती है। यह त्योहार हमारे शरीर और मन पर बहुत लाभकारी प्रभाव डालता है। होली के त्यौहार पर होलिका दहन की परंपरा है। वैज्ञानिक रूप से यह वातावरण को सुरक्षित और स्वच्छ बनाती है क्योंकि सर्दियॉ और बसंत का मौसम बैक्टीरियाओं के विकास के लिए आवश्यक वातावरण प्रदान करता है। सम्पूर्ण भारत में समाज के विभिन्न-2 स्थानों पर होलिका दहन के कारण वातावरण का तापमान 145 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ जाता है, जो बैक्टीरिया और अन्य हानिकारक कीटों को मारता है। 

होली उत्सव का बदलता रूप: 

समय के बदलते परिवेश से देश में होली का स्वरूप भी बदलता जा रहा है। सामुदायिक त्योहार की पहचान रखने वाला यह पर्व अब धीरे-धीरे जाति और समूह के दायरे में बंट रहा है। इसकी प्राचीन परंपराएं भी तेजी से खत्म होने लगी हैं। पहले हिंदी भाषी प्रदेशों में फागुन का महीना चढ़ते ही फिजा में होली के रंगीले और सुरीले गीत तैरने लगते थे। इनको स्थानीय भाषा में फाग या फगुआ गीत कहा जाता है, लेकिन वक़्त की कमी, बदलती जीवनशैली और कई अन्य वजहों से शहरों और गावों दोनों ही जगह यह परंपराएं लुप्त होती जा रही है। अब लोगों में प्रेम की भावना ही गायब होती जा रही है। ज्यादातर लोग लोग टीवी से चिपके रहते हैं और आपसी भेदभाव की वजह से एक-दूसरे से मिलने तक भी नहीं जाते है। गांवों के चौपालों से होली खेलने के लिए निकलने वाली टोली में बुजुर्ग से लेकर युवा शामिल होते थे। यह टोली सामाजिक एकता की मिसला होती थी, परन्तु इन्टरनेट के चलन के बाद देश के युवा होली के त्यौहार को ज्यादा महत्व ना देकर दिनभर अपने मोबाइल और लैपटॉप में ही व्यस्त रहते है। इस प्रकार हम कह सकते है, कि समय के बदलते सवरूप से होली के रंग अब फीके पड़ते जा रहे है। 


Oyorooms [CPS] IN
IQ Option Revenue Share

No comments:

Post a Comment

Post Top Ad

Your Ad Spot